Poems on Jhansi Ki Rani in Hindi - अगर आप झाँसी की रानी पर कविताए ढूंढ रहे है तो आप बिलकुल सही वेबसाइट पर आये है। हम इस पोस्ट में आपको झाँसी की रानी के विषय में कुछ बहुत ही लोकप्रिय कविताए का वर्णन करने जा रहे है। कविताए शुरू करने से पहले हम आपको झाँसी की रानी के जीवन का परिचय दे देते है। जिनको पढ़कर आपको झाँसी की रानी के बारे में पता चलेगा।
झाँसी की रानी का पूरा नाम रानी लक्ष्मी बाई था और उनका जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन लोग उन्हें प्यार से मनु कहकर पुकारते थे। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई थी । बताया जाता है कि सिर पर तलवार के वार से शहीद हुई थी रानी लक्ष्मीबाई।
Jhansi Ki Rani Laxmi Bai Poems in Hindi - झाँसी की रानी पर कविताए
प्रस्तुत कविताओं में कवि ने झाँसी की रानी की वीरता और साहस का वर्णन करते हुए कुछ कविताओं की रचनाए की है। इन कविताओं की मदद से कवि झाँसी की रानी की वीरता को सभी को बताना चाहता है। इन कविताओं में कवि बताता है की झाँसी की रानी एक बहुत ही बहादुर महिला थी और वह अकेले ही अपने दुश्मनो पर भारी पड़ जाती थी।
हमें आशा हैं की यह Poems in Hindi Jhansi ki Rani, Hindi Kavita on Jhansi ki Rani आपको बहुत पसंद आएगा.
1. Poem on Jhansi Ki Rani - झाँसी की रानी कविता (शुभद्रा कुमारी चौहान)
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नवाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदयपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाल, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलखा हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अब के जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय ! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
2. Poem on Jhansi Ki Rani - मैदाने जंग में मरना है ( रणवीर सिंह दहिया )
मैदाने जंग मंे मरना है, फिरंगी से नहीं डरना है
यो वायदा पूरा करना है, कहती रानी लक्ष्मी बाई॥
तीन बरस ना जेवर पहरे अपणा प्रण निभाया
रानी तै बोली गहने पहरूं यो समों लडण का आया
रानी बोली गहने पहरो, वा बोली रानी जी कहरो
नहीं मेरे पै गहना रहरो, बछिया का जुर्माना चुकाई॥
शाम दाम दण्ड भेद के दम सौचे यो राज कमाया
देश बी बंट्या जात धर्म पै फिरंगी नै फायदा ठाया
घर का भेदी यो लंका ढावै, म्हारे राज उड़ै पहोंचावै
फिंरगी आपस मैं लड़वावै, म्हारी इसनै रेल बनाई॥
दुख इतना दिया इननै कसर बाकी रही कोन्या
भोली जनता जान गई फिरंगी की नीत सही कोन्या
बड़ा जटिल रूप सै जंग का, दुश्मन पाया दुल्हाजू भाई॥
उतार-चढ़ाव आये देश मैं जन क्रान्ति का माहौल था
बोली फिरंगी सुणकै म्हारी होग्या डामा डोल था
यो बरोने आला रणबीर, जो जंग की खीचैं तस्वीर
झलकारी बनी रणधीर, जबान की घणी पक्की पाई॥
3. Poem on Jhansi Ki Rani - मतना लाओ वार सखी ( रणवीर सिंह दहिया )
मतना लाओ वार सखी, हो जाओ तैयार सखी
ठाल्यो सब हथियार सखी, लड़नी पड़ै लड़ाई हे॥
गांव गली शहर कूंचे मैं, इज्जत म्हारी महफूज नहीं
फिरंगी करै अत्याचार करता कोए बी महसूस नहीं
नहीं लड़ाई आसान सखी युद्ध होगा घमासान सखी
मारां फिरंगी शैतान सखी, ईब मतना करो समाई हे॥
रूढ़िवादी विचार क्यों दखे बनकै ये दीवार खड़े
बन्दूक ठाई औरत नै खिलाफ हुये प्रचार बड़े
फिरंगी गेरता फूट सखी, घणी मचाई लूट सखी
ईब हम लेवां ऊठ सखी, समों लड़न की आई हे॥
फिरंगी घणा फरेबी पाया फंदा घाल दिया फांसी का
रानी झांसी तार बिठाई, राज खोंस लिया झांसी का
नहीं सहां अपमान सखी, आजादी का अभियान सखी
आज आया इम्तिहान सखी, डंके की चोट बताई हे॥
जीणा सै तो लड़णा होगा, संघर्ष हमारा नारा बहना
पलटन बनाकै कदम बढ़ै, दूर नहीं किनारा बहना
अब तो उँचा बोल सखी, झिझक ले अब खोल सखी
जाये फिरंगी डोल सखी, रणबीर अलख जगाई हे॥
उम्मीद है आपको हमारी ये Poems on Jhansi ki Rani in Hindi, Jhansi Ki Rani Par Kavita, झाँसी की रानी कविताए, पसंद आयी होंगी। अगर आपको ये कविताए पसंद आई तो आप इन कविताओं को अपने मित्रो के साथ जरूर शेयर करे।
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